ज्योतिषीय परामर्श
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली को किसी व्यक्ति के जीवन का आंकलन करने का दस्तावेज माना जाता है। जन्म कुंडली के माध्यम से व्यक्ति के भविष्य, भूत और वर्तमान को जाना जा सकता है। इसलिए अपने बारे में जानने के लिए लोग अपनी कुंडली को लेकर किसी ज्योतिषी के पास जाते हैं।
कुंडली आपका सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिष दस्तावेज़ है। ज्योतिषी आपके व्यक्तिगत या व्यावसायिक जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों का विश्लेषण, विवेचन और समाधान करने के लिए आपकी जन्म कुंडली देखते हैं। क्या आप मांगलिक हैं? आपके जीवन में साढ़े साती कब है? कौन सा समय अनुकूल है और कौन सा नहीं? इन सभी सवालों का जवाब आपकी कुंडली में है।
उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है। वैदिक वास्तुकला के नियमों और निर्देशों का पालन करके, वास्तुकला के कार्यक्रम में आपूर्ति और आयाम की स्थापना की जाती है, जो एक सुखी और समृद्ध आवास का सृजन करते हैं।
सुखी और सुकून भरा जीवन जीने के लिए घर में पंचतत्वों का संतुलित होना अनिवार्य है। घर की प्रत्येक वस्तु किसी न किसी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। यदि घर वास्तु के अनुसार व्यवस्थित होता है तो इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास रहता है और घर में रहने वाले सदस्य निरोग, सुखी और धनवान बनते हैं। वास्तु सिद्धांत के अनुसार वास्तु दोषों को दूर करने अथवा कम करने में आपके घर की आंतरिक साज-सज्जा मददगार साबित हो सकती है। घर में सुख-शांति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण के लिए कुछ वास्तु नियमों को अपनाया जा सकता है।
घर में पूजा किस दिशा में होती है इसे बहुत महत्वूपर्ण माना गया है। यदि ये सही जगह पर न हो या पूजाघर की दिशा में अन्य कोई भारी सामान रखा हुआ है तो इससे बहुत ही नकरात्मक प्रभाव घर पर पड़ता है। मन की शांति और घर के चौमुखी विकास के लिए पूजाघर का स्थान उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण पर ही होना चाहिए। क्योंकि ये ही देवताओं का स्थान होता है। यह भी ध्यान रखें की पूजाघर के ऊपर या नीचे कभी टॉयलेट, रसोईघर या सीढ़ियां न हो।
आपकी दोनों हथेलियों पर हर उंगली में अलग-अलग प्रकार की रेखाएं हैं। क्या आप जानते हैं कि हर उंगली की हर रेखा आपके भविष्य के बारे में कुछ कहती है। जी हाँ, हस्तरेखा अध्ययन के जरिये आपके भविष्य और भूतकाल से जुड़ी बातें जानी जा सकती हैं। आपके हाथ में कौन-सी जीवन रेखा है, कौन-सी कॅरियर से जुड़ी रेखा है, कौन-सी विवाह या परिवार से जुड़ी रेखा है, इसके अलावा कौन-सी रेखा ऐसी है जोकि आपके संबंध में आपके मित्रों के व्यवहार को भी बता सकती है।
हस्त रेखा शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसमें व्यक्ति की हथेली की रेखाओं को देखकर उसके भविष्य से जुड़ी कई बातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। हाथ में कई ऐसी रेखाएं होती हैं जो आपको आपके करियर में आने वाली परेशानियों और सफलता के बारे में भी बता सकती हैं। हस्तरेखा शास्त्र में हाथ की रेखाओं को देखकर व्यक्ति के भाग्य से जुड़ी बहुत-सी बातों का पता लगाया जा सकता है। व्यक्ति के हाथ में ही धन, प्रेम, यहां तक की करियर से संबंधित रेखाएं पाई जाती हैं। हर व्यक्ति को यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि वह अपने करियर में आगे कितनी सफलता प्राप्त करेगा। इसके लिए भी हस्तरेखा शास्त्र की मदद ली जा सकती है।
मस्तिष्क रेखा व्यक्ति के स्वभाव और कार्य प्रणाली के विषय में जानकारी देती है और मानव चरित्र को जानने के लिए मस्तिष्क रेखा का अध्ययन विशेष सहायता प्रदान करता है। हस्तरेखा विज्ञान से किसी व्यक्ति के भविष्य को देखा जा सकता है। व्यक्ति की हाथ में तीन रेखाएं प्रमुख होतीं हैं, जिसमें से एक है मस्तिष्क रेखा। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण रेखा होती है। मस्तिष्क रेखा को यूं तो बुद्धि रेखा कहा जाता है, लेकिन ये भावनात्मकता को भी बताती है। इस रेखा के जरिए आप जान सकते हैं कि व्यक्ति सृजनात्मक कार्यों में अधिक रुचि लेने वाला है या तार्किकता में पक्का है। साथ ही मस्तिष्क रेखा ये भी बताती है व्यक्ति किस क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा और वह जीवन में कितना नाम और शोहरत कमाएगा।
ज्योतिष के अनुसार मानव जीवन में रत्नों का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र में भी रत्नों के बारे में उल्लेख किया गया है। कुंडली में कमजोर ग्रहों और उनकी नकारात्मकता को खत्म करने के लिए रत्न धारण किए जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति को ग्रहों और कुंडली के अनुसार ही रत्न धारण करने चाहिए।, लेकिन किसी भी रत्न को धारण करने से पहले किसी जानकार व्यक्ति से इसकी सलाह करना बहुत आवश्यक है।
ज्योतिष शास्त्र में रत्न का बहुत महत्त्व है। रत्नों में अद्भुत शक्ति होती है। रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमान पर पहुंचा सकता है, तो किसी को आसमान से जमीन पर लाने की क्षमता भी रखता है। रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकार से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए। ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए। रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अंतरदशा का भी ख्याल रखना चाहिए। रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है। अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलंब होता है।
मुख्यतः नौ ही रत्न ज्यादा पहने जाते हैं। माणिक सूर्य का प्रतीक होता है, मोती चंद्र का प्रतीक है, मूंगा मगल के लिए, पन्ना बुध के लिए, पुखराज गुरु के लिए, हीरा शुक्र के लिए, नीलम शनि के लिए, गोमेद राहु के लिए, लहसुनियां केतु के लिए।
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आपके जन्म समय और जन्म तिथि के समय आकाश में स्थित ग्रहों का संयोजन एक विशेष चक्र के रुप में करना कुंडली चक्र या लग्न चक्र कहलाता है। कुंडली, विशेष रूप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित रहता है। व्यापक अर्थ में, ग्रहो की स्थिति, दशा विश्लेषण, कुंडली में बनने वाले दोष एवं उनके उपाय, पत्रिका में विशेष योगों का संयोजन, ग्रहों का शुभाशुभ विचार इत्यादि का समावेश सम्पूर्ण जन्म कुंडली में किया जाता है। कुंडली को जन्म कुंडली या जन्मपत्रिका भी कहते हैं।
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कुंडली मिलान या गुण मिलान वैदिक ज्योतिष में विवाह के लिए कुंडलियों का मिलान है। हिन्दू धर्म और खासकर हिंदुस्तान में विवाह बुजुर्गो और माता पिता के आशीर्वाद से संपन होते है , इसलिए विवाह के लिए कुंडली मिलान का काफी उच्च महत्व है और कुंडली मिलान के बाद ही विवाह निश्चित किये जाते है। कुंडली मिलान के माध्यम से ये पता चलता है की किस स्तर तक ग्रह वर और वधु को आशीर्वाद दे रहे है और कौन से ज्योतिष परिहार करने से विवाह में खुशियां आ सकती है।
जब आप शादी करने का फैसला करते हैं, तो कुंडली मिलान एक महत्वपूर्ण विचार होता है। कुंडली मिलान जिसे गुण मिलान या कुंडली मिलान भी कहा जाता है। यह विवाह की ओर पहला कदम होता है, जब माता-पिता लड़की और लड़के की कुंडली का मिलान करने का निर्णय लेते हैं। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि युगल संगत है या नहीं। गुण मिलान हजारों वर्षों से भारत की संस्कृति का हिस्सा रहा है और अब भी जारी है
Whatsapp Us For Match Makingपूजा में विशेष फल की प्राप्ति के लिए कई प्रकार के यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। जैसे धन प्राप्ति की कामना के लिए कुबेर यंत्र और लक्ष्मी यंत्र की पूजा की जाती है। इसी तरह से मंगल यंत्र की पूजा मंगल ग्रह को शांत करने के लिए की जाती है, लेकिन इनके अलावा भी विशेष मंत्रो, चिन्ह और आकृतियों का प्रयोग करके कई प्रकार के यंत्र बनाए जाते हैं। ये यंत्र बहुत शक्तिशाली माने जाते हैं। इनकी विधिवत् पूजा से शीघ्र लाभ प्राप्त किया जा सकता है। हर व्यक्ति के लिए एक ही यंत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इनका प्रयोग करते समय विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, अन्यथा लाभ के स्थान पर आपको नुकसान भी झेलना पड़ सकता है
सनातन परंपरा में ईश्वर के पूजा-पाठ के लिए मंत्र जप को महा उपाय बताया गया है। घर में सुख शांति का माहौल बना रहे। इसके लिए जरूरी है कि मंत्रों का रोजाना जाप करें। हिंदू धर्म में मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति किसी भी शुभ काम को शुरू करता है तो वह मंत्रों का सहारा लेते हैं। जबकि शास्त्रों में भी कई तरह के मंत्रों की शक्ति का जिक्र करते हुए बताया गया है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र का जप करने से सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। यदि आप चाहते हैं कि आपके परिवार में सुख शांति बनी रहे।
सनातन परंपरा के अनुसार मंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है कि मन को एक तंत्र में बांधना। चूंकि, हमारे मन में कभी-कभी कई गलत विचार आ जाते हैं। जिससे हमारा मन बेवजह दुखी हो जाता है और हम तरह- तरह कि चिंताओं से भर जातें है, ऐसी स्थिति में ये मंत्र सबसे ज्यादा कारगर साबित होते हैं।
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